Tuesday, August 5, 2014

जाति कहाँ से बनती है ?


जाति प्रथा जब से प्रारम्भ हुई है तब से जाति 'वीर्य' से ही मानी जाती रही है।  क्षत्रिय राजाओं और ब्राह्मण ऋषि मुनियों के समय समय पर कामात्तुर होकर किसी भी वर्ण (जाति) की स्त्री से कामाग्नि को शांत करने के अभिप्राय से विषय भोग किया और उस स्त्री से जो संतान उत्पन्न हुई, वह क्षत्रिय तथा ब्राह्मण ही मानी गयी जिन्हें शुद्ध जाति या वंश का माना जाता था।
 
  मर्दुमशुमारी रिपोर्ट १८९१ ई. में 'राजपूत की जाति जमीन से है' यानि के किसी भी भूमिहीन राजपूत (दरोगा , वजीर, हजुरी, गोला, चाकर, सेंसस रिपोर्ट के अनुसार ) के पास जमीन होने से उसे राजपूत मान लिया जाता है।
   
उदहारण : महाभारत आदि पर्व १०० अध्याय से १०६ अध्याय तक देखिये गंधवती (सत्यवती) के विषय में लिखा है की यह एक दास कन्या थी व रूपवती भी थी यह नांव चलाने का कार्य करती थी।  एक समय ऋषि पराशर उसकी नांव में बैठे और उनसे मोहित होकर कामात्तुर हो गए। 
इस दशा में उन्होंने नांव में ही उससे सम्भोग कर अपनी कामाग्नि को शांत किया।  इस संयोग से गंधवती गर्भवती हुई टाटा अपने गर्भ से महान ऋषि वेदव्यास को जन्म दिया जो ब्राह्मण कहलाये।  यही गंधवती भीष्म पितामह की प्रेरणा से राजा शांतनु की रानी बनी व दो पुत्रों विचित्रवीर्य व चित्रांगद को जन्म दिया जो शुद्ध क्षत्रिय (राजपूत) कहलाये। 
विश्लेषण : उक्त उदहारण से ज्ञात होता है की स्त्री किसी जाति या समुदाय की हो उसके पुत्रों की जाति पुरुषों से ही निर्धारित होती है।  स्त्री की जाति पहले से निश्चित नहीं होती अर्थात भविष्य   में उसका कौन वर होगा किस जाति का होगा। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह एक असहाय स्त्री का शोषण मात्र है जिसे प्रोत्साहित करके उपयोग में लाया गया। 
 
वशी यानी चोटी कट प्रथा क्या है ?
जब मुल्क़ में अराजकता पैदा होकर सरदारों, उमरावों एवं जागीरदारों का दौर-दौरा (यानी 'जिसकी लाठी उसकी भैंस') शुरू हुआ तब से इन क्षत्रियों को उनकी ज़मीन न रहने के कारण उदर poshan के निम्मित्त जो भाई-चारे तथा दबाव से सत्तावान क्षत्रियों की सेवा करते थे उनको अन्याय से अपनी पैतृक संपत्ति मानकर पैतृक सेवक जाति बता करके भ्रान्ति फैलाई। यहाँ तक ही इस अन्याय की समाप्ति नहीं हुई षट्दर्शन को छोड़कर अन्य जितनी भी जातियां महाजन से लेकर धोबी चमार तक को सामंतवादी क्षत्रिय लोगों ने जबरन अपनी मिल्क़ियत मान कर एक ऐसी प्रथा क़ायम की थी जो वशी यानी चोटी कट प्रथा के नाम से प्रसिद्द थी जो कुछ दंड (हानि अर्थात मुआवजा) लेंगे उसे देकर जाऊँगा।  यही इसके विरुद्ध करूँगा तो आपका अपराधी बनूँगा। सामंतवाद के दबदबे एवं भय से इस प्रकार की लिखत को उस samay की अदालतें भी मानती थी और इस पर न्याय भी करती थीं।  इस प्रथा का प्रचलन सामंत काल से ही था यानी उन्नीसवीं सदी या अठारवीं शताब्दी में महाराजा मान सिंह जी के वक़्त भी था।
 
उदहारण : मुतों में मशहूर खानदान श्री अखैचन्द जी का है ये पहले ठाकुर आहोर का काम करते थे।  महाराजा मान सिंह जी ने इनकी योग्यता देखकर ठाकुर से मांग लिया और उनकी वशी निकलवाकर अपना मुसाहिक बनाया (मर्दुमशुमारी रिपोर्ट सन १८९१ ई. पेज ४१८) यह इसी वशी (चोटी कट) प्रथा का कठोरता का नमूना है की महाराजा मान सिंह जी ने श्री अखैचन्द जी को आला मुसाहिक बनाने के लिए ठाकुर से माँगा और वशी निकलवाई। यदि वशी निकलवाए बिना ले लेते तो अराजकता बढ़ जाती। 
 
चोटी कट प्रथा के पीछे सामन्तवादियों की सोच क्या थी ? 
चोटी कट : (वशी प्रथा) के अनुसार प्रत्येक सामंतवादी क्षत्रिय प्रत्येक जाति को अपनी मिल्क़ियत समझते थे और इसी के आधार पर भूमिहीन राजपूतों को इन क्षत्रियों (सामंतवादी) ने पैतृक सेवक जाति बता दास प्रथा क़ायम करनी चाहि और अप्रत्यक्ष रूप से लागू ही थी। इस षड़यंत्र का परिणाम यह है की मर्दुमशुमारी रिपोर्ट १८९१ ई. में उक्त सारे उदहारण जो पदों से आगे दिए गए इन्हें बढ़ा चढ़ा कर लिखा और इन्हें एक अलग जाति जो राजपूतों से बिलकुल भिन्न हो, करना चाहते थे।  इस षड़यंत्र में मक्कार अंग्रेजों ने इनका खूब साथ दिया था।  
 
इसी भेदभाव और उंच-नीच को आधार बना इन बेवक़ूफ़ सामन्तवादियों पर अंग्रेजों ने राज किया।  अन्यथा यह देश कभी अंग्रेजों का ग़ुलाम नहीं रहता। एक शक्तिशाली जाति को अंततः दो भागों में विभक्त होना ही पड़ा इसके लिए उस समय का वातावरण और परिस्थितियां ही ऐसी थीं, और वर्तमान में पूर्णतया सम्पूर्ण राजनीती में यह जाति- राजपूत व रावणा राजपूत के रूप में विभक्त हो चुकी जिसमें रावणा राजपूत जाति के प्रदेश स्तरीय इस समुदाय के सिरमौर श्री जसवंत सिंह सोलंकी हैं।  जिन्होनें अथक प्रयासों से आज़ादी के पहले और बाद में अलग अलग टुकड़ों में बंटी इस जाति को एक नाम रावणा के निचे एकत्रित किया आज सम्पूर्ण राजस्थान में यह जाति एकजुट होकर किसी भी सामाजिक एवं राजनितिक परिस्थितियों में अपना योगदान परिणात्मक रूप से दे सकती है।
 
मारवाड़ी कहावत : "तीजी पीढ़ी ठाकुर ने तीजी पीढ़ी चकुर ने" जब अच्छी जमीन जागीर मिल जाती तब यह पर्दा कायम कर राजपूत कहलाते व जिनकी जमीन जागीर नहीं रहती तब यह पर्दा हटा कर हलके राजपूत जाती के यानि चाकर कहलाते थे।  

20 comments:

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  4. अबे गधे पांडव और कौरव वंश राजपूत थे ही नहीं वो क्षत्रिये थे दूसरी बात क्षत्रिये केवल राजपूत ही नहीं थे प्राचीन समय में जो युद्ध लड़ते थे वो भी क्षत्रिये थे जैसे राजस्थान में यदु वंशी, जाट, मीणा इसी प्रकार अन्य राज्यों में भी अनेक जातियां क्षत्रिये थी. कुछ मुर्ख लोग भगवन राम को राजपूत जाती के बताते है जबकि उस वक्त राजपूत जाती का नामों निशान ही नहीं था राम के जन्म को तो करोड़ों साल हो चुके है जबकि राजपूतों की उत्त्पति तो महाभारत काल के कभी वर्षो बाद हुए थी. पांडवों के वंश को जाने के लिए निचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर आँखे खुल जाएगी

    http://oyepages.com/blog/view/id/514b3004bc54b2726b000019#sthash.VeHr8Kxs.dpuf

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    1. Prahlad goyal tu Kya Jane kshatriya Aur rajput ke baare me asali kshatriya rajput se milna hi to mushse mil Thakur Koshlendra Singh KAURAV

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    2. गधा तो तु भी है। राम का ईतिहास करोडो बोलता है जबकि राजा दसरथ ७५० ई.पु. का मानते है २०००ईपु.का सिधु सभय्ता तो बताओ राम पहले हुये कि सिंधु घाटी सभ्यता पहले....

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  6. Mahabharata me char warn the jho vedo be likhi satriy swarn brahmin or sodh

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  8. Or bhai Duniya Chand Ko Chu Rahi He
    Wajhir Chakar Daroga in sab ko piche chod kar samajh ki nayi pidhi ko education se upar uthao

    Jab Lal Kille par Mugal prachand or British flag tha tb

    Rawana rajput ,rajput or Bharat ki
    samast samaj jatiya gulam thi

    Un sab se lad kar aazadi dilane wale na brahmin the na rajput or na hi koi or jati se Jude the

    WO samast Manavta ki jati se Jud apni aane wali pidhiyo ko aazad rakhne ki soch rakh kar yugo tak anyay se lade

    Maharaja pratap
    Panhadhay
    Prathviraj chouhan
    Rani laxmi bai
    Veer Sivaji
    Mahatma Gandhi
    Swami Vivekanand
    Bhagat Singh
    Chandra Sekhar Aajad
    Bismil
    Subashchandra Bosh
    Or Har WO Savtantra senani jis ne oro ki khushiyo ke liye apno ko samajh ko chod manav dharm nibha kar har jatiy samuday ko aazadi dila yi

    Itihas par kabhi na mitne wale naam he ye sab

    samaj nahi sare jaha se acha hindusita banao
    Aane wali generations ko Seuss Mile gi

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  10. मौर्य काल मे पाली/प्राकृित भाषा थी संसकृत तो बाद की भाषा है। ये पुष्यमित्र सुंग के राजकवि वालमिकी द्वारा रचित महा काव्य है जिसको बोद्धो को खत्म करने के लिये मनुवादीयो द्वारा रचा गया है। १६ महाजनपद से पहले भारत एकछ्त्र राज नही था ये पंडितो का पाखण्ड है कि भारत दैश का नाम उसके नाम पर है।

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  11. संसकृत भाषा ही मौर्य काल के बाद की भाषा है है एक ओर तो सत्युग/ त्रैता/ द्वापर कई हजार साले का बतलाते है ओर दुसरी ओर उनके पात्र तिनो काल मे है। वैदव्यास जी सृष्टी की रचना मे वैद लिखे व महाभारत मे कृष्ण के समय मे भी है। ....कुल मिलाकर ये महा काव्य है हकिकत नही ध्यान रहै तमिल संसकृत से पुरानी भाषा है। जैन धर्म के सत्य ग्रंथ पाली मे है मनुवादियो ने ईतिहास के साथ खिलवाड किया है।.....जो अवतार आये है ो अब क्यु नही आ रहै कल्की अवतार पे अटक गई है बात किसने कहा कि कलकी अवतार आयैंगे पंडितो ने ही सब बकवास है। बुद्धि से काम लो अपने परिवार का भरण पोषण करो

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    1. बेदब्यास एक उपाधि है न कि नाम महाभारत जिस ब्यास ने लिखा है वे18वे ब्यास थे।
      आप जैसे कम जानकर इतिहास के बारे मे लिखेंगे
      तो आधा अधूरा ही लिखेंगे।

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    2. बेदब्यास एक उपाधि है न कि नाम महाभारत जिस ब्यास ने लिखा है वे18वे ब्यास थे।
      आप जैसे कम जानकर इतिहास के बारे मे लिखेंगे
      तो आधा अधूरा ही लिखेंगे।

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  12. Yadav the kavrav pandav shri krishna

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  13. कौरव पांडव श्रीकृष्णा यादव वंश के चंद्र वंशी थे

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    1. Orr kuch..... Bol to ase raha Jase sab ved padh k aaya ho

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  14. Sahi jankari jarur de aajke yuwa pidi aapke dwara de gaye jankari ka he palan karegi jai hind.

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